जो नाटक समाप्त हो जाने के बाद भी किसी हड़बड़ी में नही रहते थे, अभिनेताओं को सुनना चाहते थे, प्रेक्षागृह में सही जगह लेने के लिये समय से काफ़ी पहले आ जाते थे, नाटक में आयोजकों द्वारा लगाये गये सहयोग राशि उत्साह से दिया और सबसे बड़ी बात यह कि नाटक के बारे में मूल्यपरक निर्णय के बजाय एक विवेचनात्मक राय बनाते थे.